Class 12 biology chapter 1 notes । जीवो में जनन (प्रजनन)

 



अध्याय - 1  जीवो में जनन notes

class 12 biology chapter 1 notes


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जनन ----->  जीवों द्वारा अपने समान सन्तान उत्पन्न करने के क्रिया को जनन या प्रजनन कहते हैं।


जनन क्यों आवश्यक है? ---->  कीसी भी जीव की सतत् अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जनन आवश्यक है।


जनन या प्रजनन का उद्देश्य या आवश्यकता ---->  

(i) जाति वृद्धि

(ii) जाति की निरंतरता

(iii) समष्टि का संगठन

(iv) विभिन्नताएं

(v) पृथ्वी पर जीवन की उपस्थिति एवं निरंतरता


जनन की मुख्य घटनाएं ---->  

1. RNA, प्रोटीन तथा यौगिक का संश्लेषण।

2. DNA अणुओं का द्विगुणन।

3. कोशिका विभाजन तथा कोशिकाओं की वृद्धि।

4. प्रजनन अंगों का निर्माण।

5. प्रजनन इकाइयों का निर्माण एवं संयुग्मन।

6. नये जीवों का निर्माण तथा जाति की निरंतरता बनाए रखना।


जनन की विधियां (पौधों में जनन)



अलैंगिक जनन ----->  अलैंगिक जनन, जनन की एक विधि है। अलैंगिक जनन में संतति एक ही जनक से बनते हैं। इसके बनने के लिए किसी भी प्रकार के अगुणित युग्मक नहीं बनते। एकजनक के सभी संतति जीवों के लक्षण मातृ जीव के समान होते हैं।


क्लोन ---->  अलैंगिक जनन में संतति एवं जनक जीव अकारिक एवं आनुवंशिक दोनों प्रकार से एक समान होता है। इसी कारण अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतानें क्लोन कहलाती है।


       अलैंगिक जनन एक कोशिक जीवो, जैसे मोनेरा, प्रोटिस्टा तथा सरल बहुकोशिकीय जंतुओं एवं पादपो में पाया जाता है।


अलैंगिक जनन के लक्षण ---->  

1. अलैंगिक जनन केवल एक जनक द्वारा होता है।

2. इसमें केवल सूत्री विभाजन होता है।

3. अलैंगिक जनन में युगमक निर्माण नहीं होता।

4. विशेष जनन अंगों का विकास नहीं होता।

5. इसमें निषेचन नहीं होता।

6. अलैंगिक जनन अधिक तेजी से होता है।


अलैंगिक जनन के लाभ ---->

1. अलैंगिक जनन, एक जनक द्वारा होता है। अतः जनन की सम्भावना निश्चित रहती है।

2. अनेक जंतुओं व पादपों में यह  प्रतिकूल परिस्थितियों को सफलता पूर्वक सहन करने की क्षमता प्रदान करता है।

3. अलैंगिक जीवों में गुणन तेजी से होता है। और जनन के लिए अधिक प्रत्यन्न नहीं करना पड़ता है।

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अलैंगिक जनन से हानिया -----> 

1. अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतानों का आनुवंशिक संगठन पीढ़ी - दर - पीढ़ी एक समान रहता है। जिससे संतति निरन्तर दुर्बल होती जाती है।

2. उनका पर्यावरण के प्रतिअनूकुलन कम होता।

3. आनुवंशिक विभिन्नताओ की अनुपस्थिति में नयी जातियों का विकास नहीं होता।


अलैंगिक जनन की विधियां या अलैंगिक जनन के प्रकार ---->  जीवों में अलैंगिक जनन की प्रमुख विधियां

1. विखण्डन - द्विविखण्डन, बहुविखण्डन तथा 

प्लाज्मोटमी।

2. मुकुलन - एक्सोजीनस मुकुलन, तथा एण्डोजीनस मुकुलन।

3. खण्डन

4. बीजाणुजनन


विखण्डन -----‌‌>  इसमें एक कोशिक जीव दो समान भागो में बंटता हैं। इस क्रिया में पहले केंद्रक समसुत्री विभाजन द्वारा दो संतति केंद्रको में बंटता हैं। उसके बाद कोशिका द्रव भी दो भागो में बंटता जाता हैं। दोनों संतति कोशिकाएं दो नए जीव बनाती हैं।


      बैक्टीरिया में द्विविखण्डन --->  वातावरणीय परिस्थिती में बैक्टीरिया दो भागो में बटता हैं। और संतति वृद्धि करके वयस्क बैक्टीरिया बनाते हैं।


       प्रोटोजोआ में द्विविखण्डन ---->  अमीबा में

द्विविखण्डन अनियमित प्रकार का होता है क्योंकि विभाजन की दिशा निर्धारित नहीं होती।


         प्लेनेरिया में द्विविखण्डन ----->  प्रोढ़ प्लेनेरियन के शरीर का पिछला हिस्सा सिरा किसी आधार से दृढ़ता से चिपक जाता है। अब अगला सिरा आगे की ओर खींचा जाता है। इससे प्लेनेरियन का शरीर दोनों भागों में बट जाता है। और दोनों अर्द्ध भाग एक - एक प्लेनेरिया में विकसित हो जाते हैं।   चित्र को देखकर समझे।।


बहुविखण्डन --->  जब एक कोशिक या बहुकोशिक जीव का शरीर बहुत से छोटे - छोटे खण्डों में बट जाता और इस प्रकार एक जीव से बहुत से संतति जीव बनाते है, तो इस विधि को बहुविखण्डन कहते हैं। अमीबा तथा प्लाज्मोडियम में बहुविखण्डन द्वारा जनन होता है।


प्लाज्मोटोमी ----> बहुकेन्द्रकी जंको, जैसे ओपेलिना तथा पेलोमिक्सा में केन्द्रक विभाजन होता है परन्तु कोशिका विभाजन के बिना ही बहुकेन्द्रकी संतति बनने को प्लाज्मोटोमी कहते हैं।


द्विविखण्डन तथा बहुविखण्डन में अन्तर





मुकुलन अथवा टोरुलेशन ---->  कोशिकाओं अथवा जीव में छोटी - सी संरचना उभार के रूप में बनती है। इसे मुकुलन कहते है तथा इस क्रिया को मुकुलन कहते हैं।


        बाह्म मुकुलन --->  इस प्रकार के मुकुलन में शरीर से बाहर की ओर उभार बनाता है जो परिपक्व होकर मातृ शरीर से पृथक् होकर नया जीव बनाता है, जैसे यीस्ट हाइड्रा में।


          हाइड्रा में बाह्म एक्सोजीनस --->  हाइड्रा में शरीर के निचले भाग से एक बाह्म उभार निकलता है और बड़ा होने पर इसके स्वतन्त्र सिरे पर स्पर्शक विकसित होते है। पूर्ण विकसित उभार या आवर्ध हाइड्रा के शरीर से अलग होकर पूर्ण हाइड्रा बन जाता है।


          एण्डोजिनस मुकुलन‌ ---->  मारकेन्शिया में जेम्माकप में जेम्मी बनाते हैं जो अलैंगिक जनन करते हैं। जेम्मी, आंतरिक मुकुलन कहलाते हैं।


खण्डन ------> पानी, ताप तथा भोजन की अनुकूल परिस्थिति में स्पोइरोगाइरा, यूलोथ्रिक्स आदि तंतुमय शैवालों तथा कवको के तंतु छोटे - छोटे खण्डों में टूट जाते हैं। प्रत्येक खण्ड में एक अथवा एक से अधिक कोशिकाए होती है। प्रत्येक खण्ड कोशिका विभाजन करके नया शैवाल तंतु बनते है। 


बिजाणुजनन ---  बिजाणुजनन एक कोशिक पतली भिक्ति वाली अगुणित अलैंगिक जनन काय है। ये केवल प्रतिकूल वातावरण परिस्थितियों में बैक्टीरिया , शैवाक , कवकों, ब्रायोफाइट्स  तथा टेरिडोफाइट्स में बनते हैं। प्रकीर्णन द्वारा बिजाणु दूर - दूर फैलते हैं। और अनुकूलन स्थल पर अंकुरित होकर नए पौधे बनाते हैं।


चलबीजाणु व अचलबीजाणु में अन्तर



कायिक प्रवर्धन -----  कुछ निम्न एवं उच्च श्रेणी के पादपो में मातृ पौधों के किसी भी कायिक भाग से नया पौधा बनता है। इसके सभी लक्षण व गुण मातृ पौधे के समान ही होती है। कायिक जनन को कायिक प्रवर्धन के नाम से जाना जाता है। यह अलैंगिक जनन का ही रूपांतरण है। जनक पौधे के कायिक अंगों द्वारा नये पादपो का पुनर्जनन कायिक जनन या कायिक प्रवर्धन कहलाता है। तथा नये पौधों में उगने की क्षमता वाले इन कायिक अंगों को कायिक प्रवर्धन कहते हैं।


कायिक जनन या कायिक प्रवर्धन के प्रकार ---

1. प्राकृति कायिक प्रवर्धन

2. कृत्रिम कायिक प्रवर्धन 

              यह क्रिया निम्न पादपो में समान्यत: परंतु उच्च पादपो में यह केवल दो प्रकार की होती हैं।


1. प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन ----

बहुत से द्विवर्षीय तथा बहुद्विवर्षीय पादपो का कोई अंग अथवा रूपांतरित भाग प्राकृतिक रूप से मातृ पौधों से अलग होकर नया पादप बनाता है। यह क्रिया अनुकूल परिस्थितियों में होती है। पौधों का कायिक भाग, जैसे तना, जड़ व पत्ती अंकुरित होकर नया पौधा बनाते है। 

उदाहरण ---- तनो द्वारा कायिक जनन 

(a) भूमिगत तना - जैसे - आलू, अदरक, अरबी, बल्ब आदि।


जड़ो द्वारा कायिक जनन

जैसे - शकरकंद, सतावर, डेहलिया आदि।


पत्ती द्वारा कायिक जनन

जैसे - ब्रायो फिल्लम, केलेंचो, बिगोनिया आदि।


बुलबिया द्वारा कायिक जनन

जैसे - ग्लोबा बल्विफेरा, एगेव, डायोस्कोरिया आदि।


2. कृत्रिम कायिक प्रवर्धन 

मनुष्य ने अपने लाभ के लिए कायिक जनन की अनेक विधियों का विकास किया है। इन्हे कायिक जनन की कृत्रिम कायिक जनन जैसे - आलू के कंद, अदरक के प्रकन्द आदि का उपयोग कृषि उत्पाद में किया जाता हैं।


कृत्रिम कायिक जनन विधियां निम्नलिखित हैं।

(i) रोपण

(ii) कलिया रोपण अथवा कली लगाना

(iii) कलम लगाना

(iv) दाब लगाना

(v) वायु दाब अथवा गुंटी बटना

(vi) शाखा बन्धन या अन्तश्चापन


सूक्ष्म प्रवर्धन अथवा माइक्रोप्रोपेगेशन --

सूक्ष्म प्रवर्धन की क्रिया में किसी भी कोशिका ऊतक अथवा भाग को संवर्धन माध्यम में नियंत्रित वातावरण में प्रयोगशाला में वृद्धि पर पौधा प्राप्त किया जाता है।


सूक्ष्म प्रवर्धन के लाभ -

1. इस प्रक्रिया के द्वारा अत्यन्त कम समय तथा स्थान से अत्यधिक संख्या में पादप प्रवर्धन किया जा सकता है।

2. इस विधि में विकसित पौधे विषाणु जनित रोगों से मुक्त होते हैं।

3. एक लिंगी फलयुक्त पौधों में मादा पौधे का विकास इस विधि से किया है जैसे पपीता

4. सभी पौधे एक ही आनुवंशिक रचना के होते है।


                  लैंगिक जनन

लैंगिक जनन में दो विपरीत लिंग के नर व मादा युग्मको में संलयन होता है। और युग्मनज बनता है। युग्मनज में बारम्बारता विभाजन एवं कोशिका विभाजन द्वारा संतति उत्पन्न होती है।  लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति कभी भी अपने जनको के समान नहीं होती है। इसे विविधता मिलती है। क्योंकि जनन कोशिकाओं के अर्धसूत्री विभाजन द्वारा युग्मको के बनते समय सजातीय गुणसूत्रों का बटवारा सन्योगिक होता है।


लैंगिक जनन की मुख्य विशेषतएं -

1. लैंगिक जनन विपरिन्तल है। इसमें नर व मादा दो जनक भाग लेते हैं।

2. इसमें नर तथा मादा युग्मको के संलयन से द्विगुणित युग्मनज बनता है

3. युग्मको के निर्माण के समय अर्धसूत्री विभाजन अर्थात् मियोसिस विभाजन होता है।

4. संतति की आनुवंशिक संगठन मादा व पिता से तथा सभी संतति जीवों से आपस में भिन्न होता है।

5. युग्मनज से भ्रण परिवर्धन के अंतर्गत 

माइटोटिक विभाजन होती है।


पादपों में लैंगिक जनन -

पुष्पी पौधों में दो प्रकार के होते हैं।

1. मोनोकार्पिक 2. पालीकार्पिक


1. मोनोकार्पिक --  मोनोकार्पिक पादप इस  प्रकार के पादपों पर जीवन काल में केवल एक बार पुष्प लगते हैं। फल बनने के बाद पौधे समाप्त हो जाते है।


2. पालीकार्पिक पादप --  इस प्रकार के बहुवर्षीय पादपों पर प्रति वर्ष एक निश्चित महीने या मौसम में फूल व फल लगते है, जैसे , आम, सेब, संतरा, अंगूर आदि।


जंतुओं में लैंगिक जनन -

सभी प्राणी अपने जीवन में एक बार निश्चित अवस्था तक वृद्धि कर परिपक्वता तक पहुंचते हैं। और लैंगिक जनन प्रारम्भ करते हैं। प्राणियों में वृद्धि काल को किशोरावस्था तथा पादपों में कायिक प्रावस्था कहते हैं। अधिकतर प्राणियों कि किशोरावस्था की समाप्ति और प्रजनन व्यवहार से पूर्व कुछ आकरिक एवं शारीरिक परिवर्तन विकसित होते हैं। जिसके पश्चात प्राणियों में जनन प्रावस्था शुरू हो जाती है।


मदचक्र - अपरा स्तनी स्तनधारियों की मदाओ में अंडाशयों तथा सम्बन्धित अंगों में चक्रीय परिवर्तन होते है। इन परिवर्तन को मदचक्र कहते है, जैसे - गाय, भैंस, भेड़, बकरी, चूहों, हिरन, कुत्ता, शेर और चिते आदि। में मदचक्र पाया जाता है।


विभिन्न प्राणियों में जनन प्रावस्था का अवधिकाल अलग - अलग होता है, जैसे - मेंढ़क, छिपकली, सर्प, जंगली पशु, पक्षी आदि। में केवल निश्चित मौसम में ही जनन होता है। अतः इन्हें मौसम या ऋतुनिष्ठ प्रजनक कहते हैं। 

अधिकांश स्तनधारी जैसे - गाय, भैंसे, खरगोश, मनुष्य एवं बन्दर, अपि आदि। अपने पूर्ण जनन काल में जनन के लिए सक्रिय रहते हैं। ये सतत प्रजनक कहलाता है।


लैंगिक जनन में होने वाली घटनाएं -

लैंगिक जनन में होने वाली घटनाओं को तीन अवस्थाओ में बांटा जा सकता है

(i) निषेचन - पूर्व  (ii) निषेचन  (iii)  निषेचन - पश्य अथवा भ्रुणजनन।


(i) निशेचन - पूर्व घटनाएं -

इसके अंतर्गत यूग्मक जनन तथा युग्मको का स्थानांतरण सम्मिलित है।


यूग्मकजनन - यूग्मक जनन के अन्तर्गत द्विगुणित जनन कोशिकाओं में अर्ध सूत्री विभाजन के फलस्वरूप अगुणित नर अथवा मादा यूग्मक बनते हैं: युग्मको की निर्माण की प्रक्रिया को यूग्मक जनन कहते है।


(ii) निषेचन - नर तथा मादा यूग्मक के संलयन (सन्युग्मक) को निषेचन कहते है। इसे सिनगेमी भी कहा जाता है क्योंकि इसके परिणास्वरूप द्विगुणित  जाईगोट अथवा युग्मनज बनता है।


(iii) निषेचन - पश्च  अथवा भ्रूण - जनन

एक बार निषेचन होने के पश्चात युग्मनज बनता है। यह द्विगुणित होता है। लैंगिक जनन में युग्मनज का निर्माण तथा युग्मनज से भ्रूण विकास निषेचन - पश्च घटनाएं होती है।


गुणसूत्र संख्या का पुर्नस्थापन -

नर तथा मादा हैप्लायड होते है। इनमे गुणसूत्र संख्या को n द्वारा प्रदर्शित करते हैं। ये अर्ध सूत्री विभाजन द्वारा बनते हैं। निषेचन के समय नर व मादा युग्मक के संगलयन से बने जाइगोट में 2n गुणसूत्र संख्या पुनः स्थापित हो जाती है। a

अतः लैंगिक जनन में अर्ध सूत्री विभाजन एवं निषेचन दो महत्तपूर्ण पद हैं।


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